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मंदिर में प्रवेश पर रोक लगाने व मारपीट का मामला : कोर्ट ने 8 लोगों को राहत देने से किया इंकार, ये कहा…

बेंगलुरू। एक परिवार को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने के मामले में हाईकोर्ट ने 8 व्यक्तियों को राहत देने से इंकार किया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि भगवान किसी एक व्यक्ति के नहीं होते हैं वे सबके होते हैं, किसी को उनकी पूजा करने से रोका नहीं जा सकता है।अदालत एक दलित परिवार को उनकी जाति की वजह से मंदिर में प्रवेश से रोकने और उनके परिवार के साथ मारपीट किए जाने के मामले की सुनवाई कर रहे थे।

मंदिर में प्रवेश कर पूजा करने का अधिकार सभी को दिया गया है। ऐसे में किसी भी प्रकार की कट्टरता या भेदभाव अस्वीकार्य है। हालांकि किसी एकता और समावेशिता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, फिर भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को मंदिर में प्रवेश और पूजा के अधिकारों से वंचित करना अभी भी बड़ा खतरा है।

किन धाराओं के तहत दर्ज किया गया केस?
याचिकाकर्ताओं पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(10) और (11) के प्रावधानों और धारा 506, 341, 504, 143, 147, 148, 149 के तहत आरोप एफआईआर दर्ज की गई थी। पुलिस की दी गई शिकायत में उस परिवार ने कहा कि वह अपने परिवार के साथ मंदिर में होने वाली विशेष पूजा में शामिल होने जा रहे थे।

तभी कुछ विशेष समुदाय के लोगों ने सुबह 9 बजे उनको मंदिर के रास्ते में ही रोक लिया. उन्होंने जब उसका विरोध किया तो उनको गालियां देते हुए उनके और उनके परिवार के साथ मारपीट की गई. इसी शिकायत के आधार पर पुलिस ने केस दर्ज किया था।

अदालत ने राहत देने से किया इंकार
पुलिस ने इस परिवार के साथ हुई मारपीट पर एफआईआर दर्ज की और सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की। आरोपियों ने अपने बचाव के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख किया लेकिन हाईकोर्ट ने इन आरोपियों को राहत देने से बिल्कुल इंकार कर दिया।

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