नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को ऐलान किया कि चीन के साथ एक बड़ा व्यापार समझौता पूरा हो गया है। इस समझौते के तहत चीन अमेरिका को दुर्लभ खनिज और मैग्नेट की आपूर्ति करेगा, जबकि बदले में अमेरिका चीनी छात्रों को अपनी यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में पढ़ने की इजाजत देगा।
यह खबर दोनों देशों के बीच तनाव कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है। ट्रंप ने इसे अपनी कूटनीतिक जीत बताया और कहा कि यह समझौता अभी अंतिम मंजूरी के लिए उनके और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पास है।
ट्रंप ने अपने ट्रुथ सोशल प्लेटफॉर्म पर इस समझौते की जानकारी दी। उन्होंने लिखा, “चीन के साथ हमारा समझौता पूरा हो चुका है, जो मेरी और राष्ट्रपति शी की अंतिम मंजूरी के अधीन है। चीन हमें पूरी तरह से मैग्नेट और सभी जरूरी दुर्लभ खनिज पहले से देगा। इसके बदले, हमने जो वादा किया था, वह देंगे, जिसमें चीनी छात्रों को हमारे कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में पढ़ने की इजाजत शामिल है (जो मेरे लिए हमेशा ठीक रहा है!)। हमें 55% टैरिफ मिल रहा है, जबकि चीन को 10%। हमारा रिश्ता बेहतरीन है! इस पर ध्यान देने के लिए शुक्रिया।”
दुर्लभ खनिजों ने बिगाड़ा था ताल्लुक, अब सुधर रही बात- इस साल मई में दुर्लभ खनिजों की वजह से दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते में खटास आ गई थी। टैरिफ वॉर ने दोनों मुल्कों के बीच तनाव बढ़ा दिया था। लेकिन अब यह नया समझौता उस खटास को दूर करने की कोशिश है। मंगलवार को अमेरिकी और चीनी अधिकारियों ने बताया कि दोनों देशों ने एक ऐसा ढांचा तैयार किया है, जिससे व्यापार समझौता फिर से पटरी पर आएगा। इसमें चीन की ओर से दुर्लभ खनिजों पर लगी निर्यात पाबंदी हटाने की बात भी शामिल है।
चीन ने अमेरिका को दिया सहयोग- यह समझौता लंदन में हुई हालिया बातचीत का नतीजा है, जहां दुर्लभ खनिजों का निर्यात सबसे बड़ा मुद्दा रहा। ट्रंप ने साफ किया कि यह समझौता अभी पूरी तरह लागू नहीं हुआ है और इसके लिए उनकी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अंतिम मंजूरी जरूरी है। दूसरी ओर, चीन के उप-प्रधानमंत्री ने कहा कि बीजिंग वाशिंगटन के साथ “मजबूत सहयोग” के लिए तैयार है।
यह समझौता न सिर्फ व्यापार के लिए, बल्कि दोनों देशों के रिश्तों के लिए भी अहम है। दुर्लभ खनिज टेक्नोलॉजी और उद्योगों के लिए बेहद जरूरी हैं। इस समझौते से अमेरिका को इनकी आपूर्ति में आसानी होगी। इसके साथ ही चीनी छात्रों को अमेरिकी यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका मिलेगा। इससे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और शैक्षिक रिश्तों को और मजबूत करेगा।