विदिशा। हरदा और टिमरनी में तो प्रत्याशियों की हार-जीत के अंतर से ज्यादा नोटा को वोट मिले है। चुनाव आयोग ने मतदाताओं को यह अधिकार दिया है कि मतदान के दौरान वे इनमें से कोई नहीं के विकल्प को नोटा के रूप में चुन सकते है। विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं ने चुनाव में खड़े सभी प्रत्याशियों को खारिज करते हुए नोटा का बटन दबाया।
नोटा के चक्कर में कई प्रत्याशियों को अच्छा खासा नुकसान भी उठाना पड़ा। अधिकांश जिलों में नोटा ने निर्दलियों से ज्यादा मत हासिल किए है। विदिशा जिले की पांचों सीटों पर भाजपा, कांग्रेस और बसपा के बाद चौथे नंबर पर नोटा रहा है। चुनाव आयोग ने मतदाताओं को यह अधिकार दिया है कि मतदान के दौरान वे इनमें से कोई नहीं के विकल्प को नोटा के रूप में चुन सकते है। पिछले चुनावों की तरह इस बार भी हर विधानसभा क्षेत्र में बड़ी संख्या में मतदाताओं ने चुनाव में खड़े सभी प्रत्याशियों को खारिज करते हुए नोटा का बटन दबाया।
31 प्रत्याशी नोटा से कम ही वोट हासिल कर पाए
मध्य भारत क्षेत्र की 51 सीटों पर नोटा ने निर्दलीय प्रत्याशियों से ज्यादा वोट हासिल किए है। विदिशा जिले की कुल पांच सीटों पर 46 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे, इनमें से भाजपा, कांग्रेस और बसपा के 15 प्रत्याशी को छोड़कर शेष 31 प्रत्याशी नोटा से कम ही वोट हासिल कर पाए है। राजनीतिक विश्लेषक विनोद शाह कहते है कि नोटा के अधिकार से नकारात्मक वोटिंग का रुझान बढ़ रहा है। इस अधिकार को अच्छे प्रत्याशी चुनने का कारण बनाना होगा, तभी इसका उद्देश्य सार्थक होगा।
हरदा-टिमरनी में जमकर चला नोटा
मध्य भारत क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली हरदा और टिमरनी सीट पर भी नोटा का प्रभाव ज्यादा देखने को मिला। यहां प्रत्याशियों की हार जीत के अंतर से ज्यादा वोट नोटा को मिले है।हरदा सीट पर भाजपा प्रत्याशी रहे कमल पटेल की हार सिर्फ 870 वोटों से हुई है, जबकि नोटा को 2375 वोट मिले है। इसी तरह टिमरनी सीट पर भाजपा प्रत्याशी संजय शाह की हार का अंतर 950 रहा है, वहीं नोटा में 2561 वोट पड़े है।