अमरावती। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक चौंकाने वाला फैसला सुनाया है। एक पादरी को SC-ST एक्ट के तहत राहत देने से इनकार कर दिया गया क्योंकि उसने ईसाई धर्म अपना लिया था। कोर्ट का तर्क साफ: जब धर्म बदल लिया, तो आरक्षण और संरक्षण कैसे मिल सकता है?
यह फैसला गुंटूर जिले के कोथापलेम के पादरी चिंतादा आनंद से जुड़े एक मामले में आया है। जनवरी 2021 में आनंद ने आरोप लगाया था कि अक्कला रामिरेड्डी और अन्य ने उन्हें जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया, जिस पर पुलिस ने SC/ST एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया,परंतु आरोपी पक्ष ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर एफआईआर रद्द करने की मांग की।
न्यायमूर्ति एन. हरिनाथ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि, चूंकि आनंद ईसाई धर्म अपना चुके हैं और पादरी के रूप में कार्यरत हैं, इसलिए संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 के अनुसार वे अब SC श्रेणी में नहीं आते। ईसाई धर्म में जाति व्यवस्था की मान्यता नहीं है, अतः धर्मांतरण के बाद SC का दर्जा समाप्त हो जाता है, भले ही व्यक्ति के पास जाति प्रमाणपत्र मौजूद हो।
पुलिस की जांच पर सवाल- अदालत ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि धार्मिक स्थिति की पुष्टि किए बिना SC/ST एक्ट के तहत मामला दर्ज करना गंभीर लापरवाही है। आनंद ने अपने पूर्व SC दर्जे का हवाला देकर कानून का दुरुपयोग किया।
क्या आदेश दिया गया?- रामिरेड्डी और अन्य के खिलाफ केस खारिज किया गया। आनंद के जाति प्रमाणपत्र की वैधता की जांच के आदेश दिए गए। अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रमाणपत्र का अस्तित्व भी धर्मांतरण के बाद अधिनियम के तहत संरक्षण का आधार नहीं बन सकता। यह फैसला न केवल SC/ST कानून के दुरुपयोग पर लगाम लगाने की दिशा में कदम है, बल्कि धर्मांतरण और आरक्षण नीति के जटिल रिश्ते को भी उजागर करता है। यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों में न्यायिक स्पष्टता और प्रशासनिक जिम्मेदारी सुनिश्चित करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।